Saturday, April 27, 2024 | 1445 شوال 17
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रमज़ान में ‘सबर’ की ट्रेनिंग प्राप्त करें और उसे अपनी जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लें

रमज़ान में ‘सबर’ की ट्रेनिंग प्राप्त करें और उसे अपनी जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लें
 
 
मुद्दस्सीर अहमद क़ासमी
 
 
रमजान का पवित्र महीना अपनी रहमतों अवर बरकतओं के साथ हमें अपने साए मैं लिए होए है। वास्तव मैं एक मुसलमान की ये खुश क़िस्मती है कि वो इस मुबारक महीने में सांस ले, इबादतों में लगा रहे और अल्लाह तआला के उदारता अवर दया का हक़दार बने। चूंकि यह महीना हमें आत्मनिरीक्षण का निमंत्रण भी देता है इसलिए हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम अपने आप को परखें कि एक आदर्श मुसलमान की सूची में कहां खड़े हैं, इसके लिए हमें अपने आप को इस हदीस मुबारका के आईने में देखना होगा जिस मैं इस पवित्र महीने को धैर्य—सबर—का का महीना करार दिया गया है,अल्लाह के रसूल (स अ व) ने फरमाया: 
“जिसने धैर्य के महीने में उपवास रख्खा और हर महीना में तीन उपवास रख्खा मानो कि उसने पूरे साल उपवास रख्खा”। (नसाई 4/218) इब्ने अब्दुल बर्र ने इस महीने को धैर्य का महीना करार देने की वजह बताते हुए लिखा है कि जो व्यक्ति रोज़ा रखता है वह फरमाब्रादारी वाले आदेश को पूरा कर के धैर्य का प्रदर्शन करता है और अवज्ञा वाली चीजों से बचकर भरपूर सहनशीलता का प्रदर्शन करता है।
हज़रत सलमान फारसी से रिवायत है कि हुज़ूर पाक (स अ व) ने शाबान की अंतिम तिथि को एक धर्मोपदेश दिया जिस मैं रमज़ान के बरकत वाले महीने के स्वागत के लिए हमें इस तरह तैयार किया: ऐ लोगो ! बहुत बड़ी अज़मत अवर बरकत वाला महीना तुम पर साया डालने वाला है, इस मुबारक महीने की एक रात हजार महीनों से बेहतर है। अल्लाह ने इस महीने के उपवास तुम पर फ़र्ज़ किए हैं, और रात मैं खड़े होने को (मसनून तरावीह) नफिल करार दिया है। जो व्यक्ति इस महीने में दिल की खुशी से एक नेकी का काम करेगा उसे दूसरे महीने के फ़र्ज़ के बराबर सवाब मिलेगा, और जो व्यक्ति इस महीने में एक फ़र्ज़ अदा करेगा अल्लाह उसे दूसरे महीने के 70 फरज़ों के बराबर सवाब देंगे। यह 'धैर्य' का महीना है, धैर्य का इनाम स्वर्ग है। (मिशक़ात)
रमज़ान की बरकतों का उल्लेख फरमाते हुए रसूलुल्लाह (स अ व) ने इस धर्मोपदेश में रमजान को धैर्य का महीना करार दिया है, दर असल इस बिंदु को बता करके यह शिक्षा दी गई है कि इस महीने के अच्छे कर्मों से धैर्य की ट्रेनिंग मिलती है जो सांसारिक जीवन को शांत बनाने और शांति प्रदान करने का महत्वपूर्ण स्रोत तो है ही साथ ही हमेशा हमेश की जीवन में एक अच्छा ठिकाना का गारंटर भी है। 
अल्हम्दुलिल्लाह, इस पवित्र महीने में हम मैं से प्रत्येक खाने, पीने, झूठ बोलने, धोखा देने, बद नज़री करने, चुगली करने और अन्य रोके गए कामों से बचने मैं अद्भुत धैर्य का प्रदर्शन करता है और इसी के साथ फ़राइज़, सुन्न, नवाफिल, तिलावत-ए क़ुरआन, तरावीह और अन्य आदेशों को पूरा करने मैं पेश आने वाली वक़्ती परेशानियों को ख़ुशी के साथ सह भी लेता है। लेकिन अहम सवाल यह है कि मुबारक महीने से हमें जो धैर्य की ट्रेनिंग मिलती है क्या हम इसे जीवन के अन्य क्षेत्रों में लागू कर पाते हैं? इसका सकारात्मक जवाब देना बेशक असंभव है, क्योंकि आज सामाजिक जीवन में अराजकता, बेचैनी और बे कैफ़ी, धैर्य वाले तत्व की कमी के कारण ही है।
आइए हम ‘सबर’ का व्यापक संदर्भ में समीक्षा लें और अनुभव की कसौटी पर अपने आप को परख लें कि पवित्र महीने द्वारा जो धैर्य का संदेश हमें मिलता है हम इस संदेश को कहाँ तक समझते हैं और उस पर कितना अमल करते हैं। वैवाहिक जीवन में शरीयत ने एक दूसरे पर कुछ अधिकार रखे हैं। बेशक उन अधिकारों के भुगतान में कुछ अड़चनें आती हैं। सवाल यह है कि क्या हम इन समस्याओं पर धैर्य प्रदर्शन कर पाते हैं? अगर सच मैं देखा जाए तो हम में से कुछ लोग ऐसे हैं जो इन समस्याओं पर धैर्य का दामन थाम नहीं रख पाते और इसी के परिणाम में सामने वाले को एक पीड़ा से गुजरना पड़ता है। इसी तरीके से अगर पति और पत्नी मैं से किसी को अधिकार नहीं मिलता है तो वह बेसब्री के सीमा से गुजर जाता है हालांकि धैर्य के रूप में जल्द न सही बाद में ही सही हक़ मिलने की संभावना मौजूद रहता है। यहाँ अगर तथ्य स्वीकार कर लिया जाए तो यह कहना ग़लत नहीं होगा कि बेसब्री के इस स्थिति ने भी हमारे वैवाहिक जीवन के ताने-बाने को उलझा रख्खा है।
इसी तरीके से एक मुसलमान या ग़ैर-मुस्लिम का दूसरे मुसलमान पर जो अधिकार हैं अगर उसे भुगतान करने की ईमानदारी से कोशिश की जाए तो इसमें भी कठिनाई का पहलू मौजूद है जिसके लिए धैर्य अनिवार्य है। इस संदर्भ में अगर हम अपने आप का समीक्षा लें तो यह कहना ठीक होगा कि हम इस अध्याय में धैर्य से काफी दूर हैं जिसका परिणाम यह है कि मुसलमान आपस में अधिकार भुगतान ना करने की वजह से एक दूसरे से काफी दूर हो गये हैं और मिल जुल कर रहना मुहाल माना जाने लगा है। इसी तरीके से अगर किसी ने हमारा हक़ अदा नहीं किया या हमसे दुर्व्यवहार किया तो हमारा धैर्य का पैमाना तुरंत ही ग्रस्त हो जाता है और हम वह कर गुज़रते हैं जो हमारे शायाने शान नहीं है या जिस पर बाद में हम बेहद शर्मिंदा होते हैं। इस पृष्ठभूमि में अगर यह कहा जाए तो गलत न होगा कि हमारी बेसब्री की इसी आदत ने हमें तोड़कर रख दिया है और हमें बे वजन बना दिया है।
वैश्विक स्तर पर अगर मुसलमानों की समीक्षा की जाए तो हमारे सामने यह दृश्य उभर कर आता है कि हर क्षेत्र के मुसलमान दूसरे क्षेत्र के मुसलमान के अधिकार से अनभिज्ञ है। यह सच है कि मुसलमान होने के नाते एक क्षेत्र के मुसलमानों का दूसरे क्षेत्र के मुसलमानों पर जो अधिकार है अगर उसे भुगतान करने की कोशिश की जाएगी तो इसमें परेशानी का आना आवश्यक है जिसके लिए धैर्य का सहारा लेना पड़ेगा।
धैर्य की जो प्रशिक्षण हमें रमजान में मिलती है यानी रोके गए कामों से बचने पर धैर्य और आदेशों के बजा लाने में दरपेश समस्याओं पर धैर्य (गौरतलब है कि रोके गए काम झूठ और ग़ीबत तक और आदेश नमाज़ रोज़ा तक सीमित नहीं है।) 
आइए हम यह अहद करैं कि धैर्य के इस महीने में हमें जो धैर्य की ट्रेनिंग मिलती है अभी से उसे अपनी जीवन का अटूट हिस्सा बना लेंगे ताकि हमारी सांसारिक समस्या भी ठीक हो जाए और भविष्य में हमें हमारे धैर्य का बदला भी मिल जाए, यह सच है कि अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है।

 

Note: (लेखक ‘ईस्टर्न क्रिसेंट’ मैगज़ीन के असिस्टेंट एडिटर हैं।)